सोमवार, 18 मार्च 2024

अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर

अनुभूतियाँ 133/20: होली पर
1
रंग गुलालों का मौसम है
महकी हुई फिज़ाएँ भी हैं
कलियाँ कलियाँ झूम रही हैं
बहकी हुई हवाएँ भी हैं

2
रंगोली में रंग भरे हैं
चाहत के, कुछ प्रीति प्यार के
आ जाते तुम एक बार जो
आ जाते फिर दिन बहार के

"राधा" छुपती छुपती भागे
'कान्हा' ढूँढे भर पिचकारी
ग्वाल बाल की टोली आती
देख गोपियाँ देवै गारी


4
"प्रेम मुहब्बत भाईचारा"
होली का संदेश हमारा
गले मिलें औ' रंग लगाएँ
पर्व अनूठा अनुपम न्यारा

-आनन्द पाठक-

ग़ज़ल 348(23): समन्दर की व्यथा क्या है

अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर

 अनुभूतियाँ  133/20 : होली पर

;1:

रंग गुलालों का मौसम है

महकी हुई फ़ज़ाएँ भी है

कलियाँ कलियाँ झूम रही है

बहकी हुई हवाएँ भी हैं ।


;2;

रंगोली के रंग भरे हैं

चाहत के, कुछ प्रीति प्यार के

आ जाते तुम एक बार जो

आ जाते फिर दिन बहार के