सोमवार, 18 मई 2009

एक कविता 4 [01] : तुम जला कर....

एक कविता 04[01]--

तुम जलाकर दीप
रख दो आँधियों में \
जूझ लेंगे जिन्दगी से
पीते रहेंगे
गम अँधेरा ,धूप ,वर्षा
सब सहेंगे \
बच गए तो रोशनी होगी प्रखर
मिट गए तो गम न होगा \
धूम-रेखा लिख रही होगी कहानी
"जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी --

-आनन्द पाठक---

9 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

अति सुंदर ।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

बहुत ही विश्वास से परिपूर्ण पंक्तियाँ है...
सुन्दर...

आनन्द पाठक ने कहा…

आदरणीया आशा जी
बहुत बहुत धन्यवाद आप का उत्साह वर्धन के लिए

आनंद

आनन्द पाठक ने कहा…

प्रिय लोकेन्द्र जी
बहुत बहुत धन्यवाद आप का उत्साह वर्धन के लिए

आनंद

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है आपने
"जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी
- विजय

आनन्द पाठक ने कहा…

प्रिय किसलय जी !
सराहना के लिए धन्यवाद

---आनंद

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना-भावपूर्ण.

रंजना ने कहा…

Waah ! sankshipt shabdon me gahan bhaav ... bahut sundar rachna...waah !!

आनन्द पाठक ने कहा…

प्रिय रंजना जी
आप का ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर है
आप ने कविता सराही ,धन्यवाद

--आनंद