रविवार, 17 मई 2009

चुनावी दोहे ...

मन में चाहे कुटिलता दिल में चाहे घात
हाथ जोड़ मिलते रहें जनता से दिन-रात

रस्सी तनी चुनाव की नेता जी चढ़ जाय
देख संतुलन पाँव के नट-नटिनी शरमाय

पक्ष-विपक्ष करने लगे अब हमाम की बात
बाहर चाहे जो दिखे भीतर सब को ज्ञात

बरसों खिड़की बंद है नई हवा नहीं आय
वही रूढिवादी विचार धुँआ -धुँआ भर जाय

ढकी रहे उतनी भली इस चुनाव अभियान
बीच सड़क मत धोइए चड्डी व् बनियान

जनता ही समझी नहीं मेरे कार्य महान
वरना हम नहीं हारते इस चुनाव दौरान


2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

vah ji bahut sunder aj ke liye steek dohe abhar
janta hi nahi samjhi mere karya mahan varna ham nahi harte is chunav dauran

आनन्द पाठक ने कहा…

प्रिय कपिल जी
आप को दोहे का व्यग चुभ गया
उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद


--आनन्द