शनिवार, 11 जुलाई 2009

गीत 15 [20] :वह तो एक बहाना भर है ....

एक गीत 15[20]

वह तो एक बहाना भर है, वरना मेरा जीना क्या है
वरना मेरा मरना क्या है


पोर-पोर आँसू में डूबे गीत-गीत के अक्षर-अक्षर
सजल-सजल हो उठे नयन है बह जाएंगे  जैसे-निर्झर
तुमको सिर्फ़ सुनाना भर है ,वरना मेरा रोना क्या है
वरना मेरा हँसना क्या है

प्रीति-प्रीति अँजुरी में भर-भर आंचल में भरने की चाहत
दूर-दूर कटती रहती हो ,मन हो जाता आहत-आहत
वह तो एक समर्पण भर है ,वरना तुमको पाना क्या है
वरना मेरा खोना क्या है

अब तो यादें शेष रह गई ऊँगली, बाँह-पकड़ कर चलना
बल खा-खा कर गिर-गिर जाना इतराती-इठलाती रहना
दर्दो को दुलराता भर हूँ वरना मेरा सोना क्या है
वरना मेरा जगना क्या है

मेरी लौ से रही अपरिचित पावन-सी यह प्रीति तुम्हारी
पत्थर-पत्थर से है परिचित शीशे की दीवार हमारी
तेरी देहरी छूना भर है वरना मेरा गिरना क्या है
वरना मेरा उठना क्या है

वह तो एक बहाना भर है ......

-आनन्द पाठक-

सं 27-11-20

3 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

M VERMA ने कहा…

पोर-पोर आँसू में डूबे गीत-गीत के अक्षर-अक्षर
कितना दर्द भरा है आपने अपनी इस रचना मे.
बहुत खूब

Unknown ने कहा…

अच्छा गीत
बहुत अच्छा गीत
बधाई !