रविवार, 17 जनवरी 2010

एक ग़ज़ल 09[06] :आंधियों से न कोई गिला कीजिए ...

बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन
212--------212-----------212-----212
-----------------------------
एक ग़ज़ल

आँधियों से न कोई गिला कीजिए
लौ दिए की बढ़ाते रहा कीजिए

सर्द रिश्ते भी इक दिन पिघल जाएंगे
गुफ़्तगू का कोई सिलसिला कीजिए

दर्द-ए-जानां भी है,रंज-ए-दौरां भी है
क्या ज़रूरी है ख़ुद फ़ैसला कीजिए

मैं वफ़ा की दुहाई तो देता नहीं
आप जितनी भी चाहे जफ़ा कीजिए

हमवतन आप हैं ,हमज़बां आप हैं
दो दिलों में न यूँ फ़ासला कीजिए

आप आएँ न आएँ अलग बात है
पर मिलन का भरम तो रखा कीजिए

आप गै़रों में  इतने न मस्रूफ़ हों
आप ’आनन’ से भी तो मिला कीजिए

-आनन्द.पाठक -

[सं 19-05-18]

रविवार, 10 जनवरी 2010

एक सूचना :उर्दू से हिंदी

www.urdu-se-hindi.blogspot.com

इस ब्लाग का मक्सद फ़कत इतना है कि उर्दू अदब में आजकल जो लिखा/पढ़ा जा रहा है या जो सरगर्मियाँ उधर हैं उन्हे अपने हिन्दीदाँ दोस्तों को ज़ियादा से ज़ियादा वाक़िफ़ कराना है जो हिन्दी में लिखते-पढ़ते हैं और उर्दू से मोहब्बत है उर्दू के अदब आश्ना हैं.
इन्टरनेट पर बहुत सी मयारी(स्तरीय) उर्दू महफ़िलें/बज़्म/अन्जुमन/मज़लिस वगै़रह चलती है जिसमें शे’र-ओ-शायरी,बेतबाज़ी ,सौती मुशायरा ,तेहरीर.तब्सरा,मज़ामीन,नग्में ,तन्ज़-ओ-मज़ाह,अफ़्साने ,दिल्चस्प किस्से वगै़रह आते-रहते है मगर हम हिन्दी वालों की दुश्वारी यह कि इसके बेशीतर काम या तो उर्दू स्क्रिप्ट में होते हैं या रोमन उर्दू में होते हैं, जिससे हमारे हिन्दीदाँ दोस्त उर्दू की खूबियों से वाकिफ़ और लुत्फ़-अन्दोज़ नहीं हो पाते हैं.इस साइट का मक़्सद ऐसे ही कामों को हिन्दी (देवनागरी) स्क्रिप्ट में नक़्ल-ए-तहरीर (ट्रान्सलिटरेशन) करने का है और ऐसे ही दिलचस्प काम हिन्दी दुनिया के मंजरे-आम पे लाना है
मैनें एक ब्लाग www.urdu-se-hindi.blogspot.com बनाया है जहाँ आप का ख़ैरमक़्दम(स्वागत) है
कभी तशरीफ़ लाएं

आनन्द.पाठक

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

गीत 23 : जिसने मुझे बनाया ....

एक गीत : जिसने मुझे बनाया ........


जिसने मुझे बनाया ,उसका ही गीत गाया
दरबारियों की आगे कभी सर नही झुकाया

दुनिया ने मुझसे चाहा दिल वो ग़ज़ल सुनाए
तिरी नील-झील आँखें दिल डूब -डूब जाए
कैसे उन्हें भुला दूँ दो रोटियों के बदले
मासूम नन्हीं बच्ची बाजार बेंच आए

दो दिल के बीच में जो दीवार नफ़रती थी
इल्जाम सर पे मेरे मैं क्यों गिरा कर आया

सपने दिखा दिखा कर पहुँचा वह ’राजपथ’ पर
अब सो गया है ’बुधना’ सब देख देख थक कर
उसका हुनर तरीका जादू से कम नहीं है
ख़ुद काँच के मकां में ,औ" दूसरों पे पत्थर

वह भोर होते होते मिरा घर जला चुकेगा
कल शाम जिसकी हाथों देकर चिराग आया

उसको भरम यही है ,मुट्ठी में है ज़माना
"एकोऽहम" के आगे किसी और को न माना
चाँदी की तश्तरी में सोने की लेखनी ले
क्या चाहता है मुझसे क्या चाहता लिखाना ?

जिन पत्थरों के दिल में कहीं निर्झरी नहीं थी
उन पत्थरों के आगे दुखड़ा नहीं सुनाया

-आनन्द पाठक