रविवार, 30 दिसंबर 2012

गीत 42 :आज अगर ख़ामोश रहे तो--[अनामिके !]

[आज 29 दिसम्बर 20012 ,वर्ष का अवसान. अवसान एक अनामिका का,एक दामिनी का एक निर्भया का....उसे नाम की ज़रूरत नहीं ..दरिंदों के वहशीपन की शिकार.....मुक्त हो गई ..ये शरीर छोड़ कर...चली गई ये दुनिया छोड़ कर.....और छोड़ गई पीछे कई सवाल ’...जवाब तलाशने कि लिए.....। उसी सन्दर्भ में एक श्रद्धांजलि गीत प्रस्तुत कर रहा हूं...]

श्रद्धांजलि : हे अनामिके !


आज अगर ख़ामोश रहे तो ....
नए वर्ष के नई सुबह का कौन नया इतिहास लिखेगा ?


श्वान-भेड़िए , सिंहद्वार पर आकर फिर ललकार रहे हैं
साँप-सपोले चलती ’बस’ में रह रह कर फुँफकार रहे हैं
हर युग में दुर्योधन पैदा ,हर युग में दु:शासन ज़िंदा
द्रुपद सुता का चीर हरण ये करते बारम्बार रहे हैं


आज अगर ख़ामोश रहे तो ......
गली गली में दु:शासन का फिर कैसे संत्रास मिटेगा ?


जनता उतर चुकी सड़कों पर अब अपना प्रासाद संभालो !
चाहे आंसू गोले छोड़ो ,पानी की बौछार चला लो
कोटि कोटि कंठों से निकली नहीं दबेंगी ये आवाज़ें
चाहे लाठी चार्ज़ करा दो ’रैपिड एक्शन फ़ोर्स’ बुला लो


आज अगर ख़ामोश रहे तो ....
सत्ता की निर्ममता का फिर कौन भला विश्वास करेगा ?


हे अनामिके ! व्यर्थ तेरा वलिदान नहीं हम जाने देंगे
जली हुई कंदील नहीं अब बुझने या कि बुझाने देंगे
इस पीढ़ी पर कर्ज़ तुम्हारा शायद नहीं चुका पायेंगे
लेकिन फूल तुम्हारे शव का कभी नहीं मुरझाने देंगे


आज अगर ख़ामोश रहे तो .....
आने वाले कल का बोलो कौन नया आकाश रचेगा ?
कौन नया इतिहास लिखेगा ?


-आनन्द.पाठक-


3 टिप्‍पणियां:

शारदा अरोरा ने कहा…

sach kaha hai ...

Saras ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

बलात्कार व हत्या रोकने के लिए समाज की सोच को बदलना बुनियादी शर्त है
दामिनी जैसे घिनौने अपराधों में सिर्फ़ नेता और पुलिस को दोष देकर समाज को निरपराध नहीं माना जा सकता। बलात्कार और हत्या हमारे समाज का कल्चर है, अब से नहीं है बल्कि शुरू से ही है। तब न तो नेता होते थे और न ही पुलिस। तब क्या कारण थे ?
इसी देश में औरत को विधवा हो जाने पर सती भी किया जाता था लेकिन अब नहीं किया जाता। इसका मतलब, जिस बात में समाज की सोच बदल गई, वह घिनौना अपराध भी बंद हो गया। बलात्कार और हत्या अभी तक जारी हैं तो इसका मतलब यह है कि इस संबंध में समाज की सोच नहीं बदली है।
दुनिया के तमाम देशों पर नज़र डालकर देखना चाहिए कि किस देश में बलात्कार और हत्या के जुर्म सबसे कम होते हैं ?
उस देश में कौन सी नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और वैधानिक व्यवस्था काम करती है। उसके बारे में अपने देशवासियों को जागरूक करके हम अपने समाज की सोच बदल सकते हैं और उसे अपनाकर इन घिनौने अपराधों को रोका जा सकता है।