शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 03


:1;

ख़ुद से न गिला होता

यूँ न भटकते हम
तू काश! मिला होता

:2:


ऐसे न बनो बरहम

चुप हो पहलू में !
कैसी ये सजा जानम ?

:3:

बरगद बूढ़ा ही सही
घर के आँगन में
इक छाँव बनी तो रही

:4:

मिलने में मुहुरत क्या
जब चाहे आना
साइत की ज़रूरत क्या

:5:


रिश्तों को निभा देना

बर्फ़ जमी हो तो
कुछ धूप दिखा देना



[सं 21-10-20]

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