बुधवार, 10 सितंबर 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 08



:01:

कुछ याद तुम्हारी है

उस से ही दुनिया
आबाद हमारी है

;02:


जब तक कि सँभल पाता

राह-ए-उल्फ़त में
ठोकर हूँ नया खाता

:03:


लहराओ न यूँ आँचल

दिल का भरोसा क्या
हो जाय न फिर पागल

;04:


जीने का ज़रिया था

सूख गया वो भी
जो प्यार का दरिया था

:05:


गिरते न बिखरते हम

काश ! सफ़र में तुम
चलते जो साथ सनम

-आनन्द.पाठक



[सं 15-06-18]

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

आज कल ब्लाग्स पर सन्नाटा रहता है हमारे जमाने मे जब 50 कमेन्ट से कम आते थे तो हैरानी होती थी1 अब तो खुद ही अपने ब्लाग पर जाना नही होता1 बहुत शानदार पोस्ट 1