शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

एक गीत 65 : आओ कुछ दीप हम जलाएँ----



एक गीत : आओ कुछ दीप हम जलाएँ---[दीपावली पर ]


एक अमा और हम मिटाएँ
आओ कुछ दीप हम जलाएँ

खुशियाँ उल्लास साथ लेकर
युग युग से आ रही दिवाली
कितना है मिट सका अँधेरा
कितनी दीपावली  मना  ली

अन्तस में हो घना अँधेरा ,आशा की किरण हम जगाएँ,
आओ कुछ दीप हम जलाएँ


नफ़रत की हवा बह रही है
और इधर दीप जल रहा है
रिश्तों पर धूल जम रही है
मन में दुर्भाव पल रहा  है

शान्ति के प्रतीक हैं कबूतर ,आसमान में चलो उड़ाएँ
आओ कुछ दीप हम जलाएँ


जगमग हो दीपमालिका से
हर घर का आँगन ,चौबारा
ज्योति कलश छलक छलक जाए
मिट जाए मन का अँधियारा

आया है पर्व रोशनी का   ,ज्योति-पर्व प्रेम से मनाएँ
एक अमा और हम मिटाएँ ,आओ कुछ दीप हम जलाएँ


-आनन्द.पाठक-

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल 130 : क़ानून की नज़र में --

221----2122---// 221--2122


ग़ज़ल

’क़ानून की नज़र में ,सब एक हैं ’-बता कर
रखते रसूख़वाले  , पाँवो  तले दबा कर

कल तक जहाँ खड़ा था ,"बुधना" वहीं खड़ा है
लूटा है रहबरों  ने,सपने  दिखा दिखा  कर

जब आम आदमी की आँखों में हों शरारे
कर दे नया सवेरा ,सूरज नया  उगा कर

क्या सोच कर गए थे ,तुम आइना दिखाने
अंधों की बस्तियों  से , आए फ़रेब खा कर

जब दल बदल ही करना, तब दीन क्या धरम क्या
हासिल हुई हो कुरसी ,ईमान जब लुटा कर

उनका लहू बदन का ,अब हो गया है पानी
रखते ज़मीर अपना ,’संसद’ में वो सुला कर

यह देश है हमारा ,हमको इसे बचाना

 सींचा सभी ने इसको ,अपना लहू बहा कर

’आनन’ ज़मीर तेरा ,अब तक नहीं मरा है
रखना इसे तू ज़िन्दा ,गर्दिश में भी  बचा कर

-आनन्द.पाठक-