दोहे 19
वह तो थीं परछाइयाँ , हुआ बाद में ज्ञान ।
एक गया दूजा रहा, दोनों गए न साथ
फिर भी इक जिन्दा रहा बिना हाथ मे हाथ
फिर भी इक जिन्दा रहा बिना हाथ मे हाथ
समय समय का फेर है, जब भी बदली चाल
कल के धन्ना सेठ भी, आज हुए कंगाल
बडे लोग की बात है, मत कर इतना आस
अपनी बाहों सदा 'आनन' रख विश्वास
अपनी बाहों सदा 'आनन' रख विश्वास
राहों में काँटे पड़े, कभी न बोले शूल
लेकिन खुशबू बोलती, किधर खिले हैं फूल
जो भी तेरा धर्म हो, जो भी तेरी सोच
मानवता के काज में, मत कर तू संकोच
शीश महल वाले खड़े, उन लोगों के साथ
साजिश में शामिल रहे लेकर पत्थर हाथ
-आनन्द पाठक-