गुरुवार, 15 नवंबर 2007

चुनावी दोहे 05

राजनीति के घाट पर भई संतन की भीड़
'हाई कमान 'बाटत टिकट ,टिकट लई धन-वीर

कंधे-कंधे ढो रहे , ले लंगडी सरकार
वही समर्थन वापसी,फिर वैतलवा डार

नहीं ताव नही आग अब ,नहीं उचित यही काल
'परमाणु संधि ' में उलझ गयो आगे कौन हवाल

वादे करते जाइए आश्वासन देवें भीख
जनता जाए भाड़ में लोकतंत्र की सीख

मगरमच्छ आंसू बहे देख दलित की भीड़
धीरे-धीरे हो गई राजनीति की रीढ़

राजनीति व्यापार में उलटी चलती रीति -
कलतक जिनसे दुश्मनी ,आज उन्ही से प्रीति


लोकतंत्र के नाम पर भीड़्तंत्र पहचान
पत्थर को शिवलिंग समझ करे आचमन पान


(प्रकाशित राजस्थान पत्रिका अहमदाबाद संस्करण )

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