मंगलवार, 6 नवंबर 2007

दोहे 03 : साबुनी दोहे

[ इन दोहों में सुधार अपेक्षित है--कॄपया प्रतीक्षा करें ---]
- साबुनी दोहे-


नशा चढ़ा जब फिल्म का, टूटा उनका मौन
हर कन्या से पूछते 'हम आप के कौन'

'चारित्रिक व्यक्तित्व ' पर जो कीचड़ लग जाय
'सर्फ़-अल्ट्रा ' से धोइए श्वेत धवल होई जाय

साबुन मल मल जग मुआ धवल वस्त्र ना होय
हाथ ओ०के० मल्यो धवल धवल ही होय

लड़की देखन जाइहो, वस्त्र लिहो चमकाय
हरा डिटरजेन्ट व्हील का इज्ज़त लेय बचाय

सुपर सर्फ़ से धुल गयो ,भ्रष्टाचार लकीर
दाग ढूँढते रह गए साधू-संत-फकीर ।

-आनन्द.पाठक-

कोई टिप्पणी नहीं: