रविवार, 2 मई 2010

एक ग़ज़ल 10 : रकीबों से क्या आप ......

बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
फ़ऊलुन---फ़ऊलुन---फ़ऊलुन--फ़ऊलुन
122--------122--------122----------122
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एक ग़ज़ल

रक़ीबों से क्या आप फ़रमा रहे हैं !
हमें देख कर और घबरा रहे हैं

इलाही! मेरे  ये अदा कौन सी है !
कि छुपते हुए भी नज़र आ रहे हैं

उन्हें आईना क्या ज़रा सा दिखाया
वो पत्थर उठाए इधर आ रहे हैं

सुनाया जो उनको ग़मों का फ़साना
वह झुझँला रहे है, वो शरमा रहे हैं

मुहब्बत का हासिल है आह-ओ-फ़ुगाँ बस
ये कह कह के हम को वो समझा रहे हैं

कहानी पुरानी है उल्फ़त की "आनन्"
हमी तो नहीं है  जो दुहरा रहे हैं

-आनन्द पाठक-

[सं 19-05-18]

3 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

वाह!!बहुत उम्दा गजल है आनंद जी। बधाई स्वीकारें।

Udan Tashtari ने कहा…

सुनाया जो उनको ग़मों का फ़साना
वह झुझँला रहे है, वो शरमा रहे हैं

वाह! बहुत खूब!

Shekhar Kumawat ने कहा…

कहानी पुरानी है उल्फ़त की "आनन्द"
हमी तो नहीं हैं जो दुहरा रहे हैं

maza aa gaya