शनिवार, 17 जुलाई 2010

ग़ज़ल 16 : तुम को खुदा कहा है .....

मफ़ऊलु---फ़ाइलातुन---// मफ़ऊलु----फ़ाइलातुन
221--------------2122   // 221-----------2122
बह्र-ए-मज़ारि’अ मुसम्मन अख़रब
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तुमको ख़ुदा कहा है,  किसने ? पता नहीं है
दिल ने न कह दिया हो !,  मैने कहा नहीं है

दर पर तेरे न आऊँ ,सर भी नहीं झुकाऊँ !
दुनिया में आशिक़ी की ,ऐसी सजा नहीं है

पुरतिश्नगी ये मेरी ,जल्वा नुमाई तेरी
मेरी ख़ता भले हो , तेरी ख़ता नहीं है

कब ये जुबाँ खुली है ,तेरी सितमगरी से
ऐसा कभी न होगा ,ऐसा हुआ नहीं है

वो इश्क़ के सफ़र का ,राही नया नया है
आह-ओ-फ़ुगाँ ,जुनूँ की, हद जानता नहीं है

ऐसा नहीं है कोई ,जो इश्क़ का न मारा
जिसकी न आँख नम हो ,जो ग़मजदा नहीं है

उल्फ़त का ये सफ़र भी,  कैसा अजब सफ़र है!
जो एक बार जाता  , वो लौटता नहीं है

किसके ख़याल में तुम, यूँ गुमशुदा हो ’आनन’?
उल्फ़त की मंज़िलों का, तुमको पता नहीं है

-आनन्द.पाठक

[सं 19-05-18]

1 टिप्पणी:

Himanshu Mohan ने कहा…

रचना अच्छी है, पर नयापन नहीं मिला, यह खला।