मंगलवार, 10 जनवरी 2012

एक गज़ल 26 : आप इतना खौफ़ क्यों...

2122----2122----2122
फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन---फ़ाइलातुन
बह्र--ए-रमल मुसद्दस सालिम
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आप इतना ख़ौफ़ क्यों खाए हुए हैं ?
शह्र में जी ! क्या नए आए  हुए हैं ?

’आदमीयत’ खोजना तो व्यर्थ होगा
आदमी अब  मौत के साए हुए हैं

कुछ सियासी लोग ने क्या रंग बदले
गिरगिटों के रंग शरमाए हुए हैं

लोग श्रद्धा से नहीं हैं जनसभा में
चन्द सिक्कों के लिए आए हुए हैं

हक़ ब जानिब तो खड़ा है सर झुकाए
झूट वाले आजकल छाए हुए हैं

कब उन्हे फ़ुरसत की मेरी बात सुन लें
अपनी डफ़ली राग ख़ुद गाए हुए हैं

सुब्ह जीना शाम मरना रोज़ ’आनन’
आप क्यों मुझ पर तरस खाए हुए हैं

आनन्द पाठक

[सं 03-05-18]

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