रविवार, 15 अप्रैल 2012

ग़ज़ल 28 [11] : पागलों सी बात करता है...

एक ग़ज़ल 28[11]

बह्र-ए-रमल मुसद्दस सालिम मक़्लूअ" महज़ूफ़
2122--2122--2
फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन--फ़े
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पागलों सी बात करता है
सच को ही ईमान कहता है

गालियाँ ही आज तक पाई
जब भी पर्दाफ़ाश करता है


वो अजायब घर का शै होगा
ग़ैर का जो दर्द सहता है

चाह कर भी कह नहीं पाता
जब भी अपनी बात कहता है

जब कि आदिल ही यहाँ बहरे
किस से वो फ़रियाद करता है ?

अलगरज़ कुछ तो सबब होगा
कौन वरना किस पे मरता है?

क्या  उसे   लेना  ज़माने  से
अपनी दुनिया में जो रहता है

सूलियों पर क्यों टँगा ’आनन’?
आदमी से प्यार करता है



आनन्द.पाठक
[सं 03-06-18]



6 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

गालियाँ ही आज तक पाई
जब भी पर्दाफ़ाश करता है
यही सच है .. बहुत खूब

Arshad Ali ने कहा…

bahut khoob...
bilkul mere jaisa haal hai uska bhi..
jo mai kar guzra wo bhi wahi kamal karta hai...
shayad zindagi uljhi rahe ta umr uski bhi mere jaise ..
magar tum kab samjhoge wo bhi yahi sawal karta hai..

Arun sathi ने कहा…

सूलियों पर क्यों टँगा ’आनन’?

आदमी से प्यार करता है

साधु-साधु

Arun sathi ने कहा…

साधु-साधु

Sunil Kumar ने कहा…

अलगरज़ कुछ तो सबब होगा
कौन किस पर यूँ ही मरता है?
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ...

Pallavi saxena ने कहा…

सार्थक रचना बधाई ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/