बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

एक ग़ज़ल 39[54] : आप मुझको सामने पाते.....

ग़ज़ल 39  [54]: आप मुझको साथ में पाते--
बह्र-ए-रमल मुसद्दस मक़्लूअ’ महज़ूफ़

2122---2122-----2-
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आप मुझको साथ में  पाते
आसमाँ  से जो उतर आते

चाँद ,तारों ,ख़्वाब , वादों के
झुनझुने देकर न बहलाते

उँगलिया क्यों आप पर उठतीं
आइनों से जो न घबराते

और भी कितने मसाईल हैं
आप  हैं अनजान बन जाते

चाँदनी तो चार दिन की है
किसलिए हैं आप इतराते ?

साफ़ चेहरा अब कहाँ ढूँढू
सब रंगे चेहरे नज़र आते ?

बस यही आदत बुरी ’आनन’
दर्द अपने क्यों छुपा जाते ?

-आनन्द.पाठक-
[सं 27-10-18]





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