शनिवार, 17 अगस्त 2013

एक ग़ज़ल 50 : वो शहादत पे सियासत कर गए...

2122--2122-212

वो शहादत पे सियासत कर गए
मेरी आंखों में दो आँसू भर गए

लोग तो ऐसे नहीं थेक्या हुआ ?
लाश से दामनकशां ,बच कर गए

देखने वाले तमाशा देख कर
राह पकड़ी और अपने घर गए

ये शराफ़त थी हमारी ,चुप रहे
क्या समझते हो कि तुम से डर गए?

सद गुनाहें याद क्यों आने लगे
बाअक़ीदत जब भी उनके दर गए

साथ लेकर क्या यहाँ से जाओगे
जो गये हैं साथ क्या लेकर गए

दिल के अन्दर तो कभी ढूँढा नहीं
ढूँढने आनन’ को क्यूँ बाहर गए
 
दामनकशां = अपना दामन बचा कर निकलने वाला
बाअक़ीदत =श्रद्धा पूर्वक


-आनन्द.पाठक-

3 टिप्‍पणियां:

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (19.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल की रचना की है आपने,धन्यबाद।

Unknown ने कहा…

























very nice