गुरुवार, 19 सितंबर 2013

एक ग़ज़ल 53 : तुम्हारा शौक़ ये होगा...

1222--1222--1222--1222

तुम्हारा शौक़ ये होगा भरोसे को जगा देना
दिखावा दोस्ती का कर के फिर ख़ंज़र चला देना

हलफ़् सच की उठा कर फिर गवाही झूट की देकर
तुम्हारे दिल पे क्या गुज़री ,ज़रा ये भी बता देना

चले थे  इन्क़लाबी दौर  में  कुर्बानियां  करने
कहो,फिर क्या हुआ ’दिल्ली’में जा कर सर झुका देना

बड़ी हिम्मत शिकन होती सफ़र है राह-ए-उल्फ़त की
जहाँ अन्जाम होता है ख़ुदी में ख़ुद मिटा देना

पसीने से लिखा करता हूँ हर्फ़-ए-कामयाबी ख़ुद
तुम्हारा क्या ! ख़रीदे क़लम से कुछ भी लिखा देना

तुम्हारे हुनर में ये भी चलो अब हो गया शामिल
कि सच को झूट कह देना कि बातिल सच बता देना

वही दुनिया के रंज-ओ-ग़म,वही आलाम-ए-हस्ती है
कहीं ’आनन्द’ मिल जाये तो ’आनन’ से मिला देना

शब्दार्थ
आलाम-ए-ह्स्ती =जीवन के दुख
बातिल    = झूट
आनन्द = खुशी /अपना नाम ’आनन्द’


-आनन्द.पाठक-
09413395592