बुधवार, 14 जनवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 13


:1:

इक अक्स उतर आया

दिल के शीशे में
फिर कौन नज़र आया

:2:

ता उम्र रहा चलता
ख्वाब मिलन का था
आँखों में रहा पलता


:3:
तुम से न कभी सुलझें
अच्छी लगती हैं
बिखरी बिखरी ज़ुल्फ़ें



:4:
गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी भी
लगती तो सुहानी है

:5:


वो मज़हब में उलझे

मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे


-आनन्द.पाठक

[सं0 09-06-18]

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