रविवार, 31 मई 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 21



:1:
जब जब चलती हो तुम
लहरा कर ज़ुल्फ़ें
दिल हो जाता है गुम


:2:
पर्दा जो उठा लेंगे
जिस दिन वो अपना
हम जान लुटा देंगे

:3:
चादर न धुली होगी
जाने से पहले
मुठ्ठी भी खुली होगी

4
दिल ऐसा हुआ पागल
हर आहट समझा
झनकी उसकी पायल

:5:
पाकर भी है खोना
टूटे सपनों का
फिर क्या रोना धोना

-आनन्द.पाठक
[सं 12-06-18]

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