रविवार, 19 जुलाई 2015

एक ग़ज़ल 73[18]: रास्ता इक और ...

2122---2122-----212

रास्ता इक और आयेगा निकल
हौसले से दो क़दम आगे तो चल

लोग कहते हैं भले ,कहते रहें
तू इरादों मे न कर रद्द-ओ-बदल

यूँ हज़ारो लोग मिलते हैं यहाँ
’आदमी’ मिलता कहाँ है आजकल

इन्क़लाबी सोच है उसकी ,मगर
क्यूँ बदल जाता है वो वक़्त-ए-अमल

इश्क़वालों  की अजब तासीर से
संग दिलवाले  भी जाते हैं पिघल

इक ग़म-ए-जानाँ ही क्यूँ हर्फ़-ए-सुखन
कुछ ग़म-ए-दौराँ भी कर ,हुस्न-ए-ग़ज़ल

खाक से ज़्यादा नहीं हस्ती तेरी
इस लिए ’आनन’ न तू ज़्यादा उछल

-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ
ग़म-ए-जानाँ  = अपना दर्द
ग़म-ए-दौराँ   = ज़माने का दर्द
जौक़-ए-सुखन = ग़ज़ल लिखने/कहने का शौक़
हुस्न-ए-ग़ज़ल = ग़ज़ल का सौन्दर्य
वक़्त-ए-अमल = अमल करने के समय

[सं 30-06-19]

5 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में मंगलवार 21 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह !

शारदा अरोरा ने कहा…

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल , दिल को छूती हुई ...

Pramod Kumar Kush 'tanha' ने कहा…

"लोग कहते हैं भले ,कहते रहें तू इरादों मे न कर रद्द-ओ-बदल"

बहुत खूबसूरत ... बधाई !!! - प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'

आनन्द पाठक ने कहा…

aadarNeeya/aadarNeeyaa

utsaaH vardhan ke liYe aap sabhi kaa bahut bahut Dhanyavaad

Mera Hindi ka programme abhi kaam nahiN kar rahaa hai , is Liye roman meN dhanyavaad pragat kar rahaa hoon

saadar
anand pathak