शनिवार, 1 जुलाई 2017

एक ग़ज़ल 89[42] : मिल जाओ अगर तुम तो----

221--1222 // 221-1222

एक ग़ज़ल :  मिल जाओ अगर तुम---

मिल जाओ अगर तुम तो ,मिल जाये खुदाई है
क्यों तुम से करूँ परदा , जब दिल में सफ़ाई है

देखा तो नहीं अबतक . लेकिन हो ख़यालों में
सीरत की तेरी मैने ,  तस्वीर   बनाई   है

लोगों से सुना था कुछ , कुछ जिक्र किताबों में
कुछ रंग-ए-तसव्वुर से , रंगोली  सजाई  है

माना कि रहा हासिल ,कुछ दर्द ,या चश्म-ए-नम
पर रस्म थी उल्फ़त की,  शिद्दत  से निभाई है

ज़ाहिद ने बहुत रोका ,दिल है कि नहीं माना
बस इश्क़-ए-बुतां ख़ातिर ,इक उम्र  गँवाई  है

ये इश्क़-ए-हक़ीक़ी है ,या इश्क़-ए-मजाज़ी है
दोनो की इबादत में ,गरदन ही झुकाई  है

’आनन’ जो कभी तूने ,दिल खोल दिया होता
ख़ुशबू  तो तेरे दिल के ,अन्दर ही समाई  है

-आनन्द.पाठक-     

सीरत   = चारित्रिक विशेषताएं
रंग-ए-तसव्वुर= कल्पनाओं के रंग से
चस्म-ए-नम   = आँसू भरी आंख , दुखी
शिद्दत से = मनोयोग से
इश्क़-ए-हक़ीकी= आध्यात्मिक/अलौकिक प्रेम
इश्क़-ए-मजाज़ी = सांसारिक प्रेम

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