शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

ग़ज़ल 102[22] : पयाम-ए-उल्फ़त मिला तो होगा--

ग़ज़ल 102 : पयाम -ए-उलफ़त मिला तो होगा----

121--22/121-22/121-22/121-22

पयाम-ए-उल्फ़त मिला तो होगा ,न आने का कुछ बहाना होगा
मेरी अक़ीदत में क्या कमी थी ,सबब ये तुम को बताना होगा

जो एक पल की ख़ता हुई थी ,वो ऐसा कोई गुनाह कब थी
नज़र से तुमने गिरा दिया है,तुम्ही को आकर उठाना होगा

ख़ुदा के बदले सनमपरस्ती .ये कुफ़्र है या कि बन्दगी है
हद-ए-जूनूँ में ख़बर न होगी ,ज़रूर कोई दिवाना  होगा

मेरी मुहब्बत है पाक दामन ,रह-ए-मुक़्द्दस में  नूर-अफ़्शाँ
तो फिर ये पर्दा है किस से जानम,निक़ाब रूख से हटाना होगा

इधर है मन्दिर उधर मसाजिद ,कहीं कलीसा की चार बातें
सभी की राहें जो मुख़्तलिफ़ हैं ,तो क्या है यकसा ?बताना होगा

कहीं थे काँटे ,कहीं था सहरा, कहीं  था दरिया ,कहीं था तूफ़ां
कहाँ कहाँ से नहीं हूँ गुज़रा , ये राज़ तुमने न जाना होगा

रहीन-ए-मिन्नत रहूँगा ’आनन’,कभी वो गुज़रें अगर इधर से
अज़ल से हूँ मुन्तज़िर मैं उनका. न आएँ हैं वो, न आना होगा

-आनन्द.पाठक-

सं 07-02-2021

[सं 22-07-19]

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