गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

ग़ज़ल 110[54] : राम की बात करते--


ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन---मफ़ाइलुन----फ़े’लुन
2122---------1212-----22



राम मन्दिर की बात करते हैं
’वोट’ से झोलियाँ वो भरते हैं

अह्ल-ए-दुनिया की बात क्या करना
लोग दम झूठ का ही भरते हैं

कौन सुनता है हम ग़रीबों की
साँस लेते हुए भी मरते हैं

जो भी कहना है बरमला कहिए
बात क्यों यूँ घुमा के करते हैं

आप की कोशिशें हज़ार रहीं
टूट कर भी न हम बिखरते हैं

आप से क्या गिला करें ’आनन’
कस्में खाते हैं फिर मुकरते हैं

-आनन्द.पाठक-


बरमला= खुल्लम खुल्ला

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