तुम्हारा सफ़र जो भी बाक़ी मुबारक
4
कश्ती को डुबोने की ,साहिल पे है तैयारी
बगुलों की ,मछलियों से साजिश की तहत यारी
5
सुला कर हसरतें अपनी तेरे दर से गुज़रता हूँ
हज़ारों हसरतें फिर भी हैं दिल की ,जाग जाती हैं
6
कौन सा है वो रिश्ता मेरा आप से
मैने सोचा बहुत आप भी सोचिए
मैं मुहब्बत वफ़ा सब निभाता रहा
आप से कब निभाई गई , सोचिए
7
मैं मह्व-ए-यार में डूबी हुई ख़ुद से जुदा होकर
लिखूँ भी क्या लिखूँ दिल की उसे पढ़ना नहीं आता
अजब दीवानगी उसकी,नया राही मुहब्बत का
वफ़ा के नाम पर उसको अभी मरना नहीं आता
8
बात यूँ ही निकल गई होगी
रुख़ की रंगत बदल गई होगी
नाम मेरा जो सुन लिया होगा
चौंक कर वो सँभल गई होगी
9
कौन सा है जो ग़म दिल पे गुज़रा नहीं
बारहा टूट कर भी हूँ बिखरा नहीं
अब किसे है ख़बर क्या है सूद-ओ-ज़ियाँ
इश्क़ का ये नशा है जो उतरा नहीं
10
मसाइल और भी हैं पर तुम्हे फ़ुरसत कहाँ है
कहाँ तक हम सुनाएँ दास्ताँ अश्क-ए-रवाँ की
11
वो दिन भी मैने देखें हैं जब एक निदा इक बोली पर
सरमस्तों की टोली निकली,घर घर से दीवाने निकले
अब तक सबने लूटा मुझको ,बस झूटे वादे कर कर के
सब अपने थे वो ग़ैर नहीं सब जाने पहचाने निकले
12
तुम्हें भूल जाने की कोशिश में ’आनन’
मैं ख़ुद को ही ख़ुद भूलता जा रहा हूँ
13
इलाही मेरे ! ये अदा कौन सी है
कि छुपते हुए भी नज़र आ रहे हैं
14
मुहब्बत इक इनायत है ख़ुदा की कारसाजी है
किसी को हुस्न जब देता ,वहीं इक दिल भी है गढ़ता
जुनून-ए-इश्क़ है तो फिर ख़िजाँ क्या है बहाराँ क्या
फ़ना होना ही जब हासिल ,शराईत कौन है पढ़ता
ये उलफ़त का जो दरिया है अजब उसकी सिफ़त’आनन’
जो चढ़ता है तो चढ़ता है ,नहीं चढ़ना ,नहीं चढ़ता
15
इबादत है ,सदाक़त है ,न ये कोई तिजारत है
वो ख़ुश क़िस्मत है जिसको मिल गई हो प्यार की मंज़िल
16
तू सवाल है कि जवाब है ? ,मुझे ये बता, मेरी ज़िन्दगी !
मेरे दर्द-ओ-ग़म का हिसाब है कि तू बेवफ़ा? मेरी ज़िन्दगी !
17
कभी कभी तो डर लगता है ,कैसे प्यार सँभालूँगा मैं
इतना प्यार मुझे करती हो ,कैसे कर्ज़ उतारूँगा मैं
देख रहा हूँ ख़्वाब अभी से आने वाले कल का जानम
इन्शाअल्ला ! इक दिन तुम को पलकों पे बिठा लूँगा मै
18
क़ुरबत ने कुछ तो तुम से उम्मीद है जगाई
आए थे ख़्वाब रंगीं ,ना नीद आज आई
जाने किधर को लेकर जायेगा दिल दिवाना
कैसी ये तिश्नगी है , कैसी है आशनाई
19
कभी कभी तो डर लगता है ,कैसे प्यार सँम्भालूँगा मैं
इतना प्यार जो तुम दे दोगी ,कैसे कर्ज़ उतारूँगा मैं
देख रहा हूँ ख़्वाब अभी से आने वाले कल का ,जानम
इन्शा अल्ला ! इक दिन तुम को पलकों पे बिठा लूँगा मैं
20
1222---1222----1222-----1222
तुम्हारी बेनियाज़ी का बहुत मश्कूर हूँ ’आनन’
कि दिल मक़्रूज़ है मेरा तुम्हारी इस इनायत से
मश्कूर = आभारी
मक़्रूज़ - ॠणी
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समाप्त