1
1222--------1222-------1222-------1222
1222--------1222-------1222-------1222
वही ख़ुशबख़्त है ’आनन’ ,मुहब्बत हो जिसे हासिल
वगरना ज़िन्दगी तो उम्र भर ग़मगीन रहती है
2
तेरी तसवीर को दुनिया से छुपा रखता हूँ
उस से तनहाई में फिर बात किया करता हूँ
4
1222---1222-----1222-----1222
मुहब्बत का दिया रख दर पे उनके आ गया ’आनन’
यही अब देखना है वो बचाते या बुझाते हैं
5
221---2122--//221---2122
मैं आम आदमी हूँ ,है ’वोट’ मेरी ताक़त
है संविधान की यह ,सबसे बड़ी इनायत
6
1212---1122---1212----112/22
तेरा सवाल कोई यूँ बड़ा नहीं था मगर
7
221---2122 //221---2122
रहबर समझ के तुझको तेरे साथ चल रहे थे
क्या थी ख़बर की तू भी रहजन से कम नहीं है
8
2212--1212--1212---12
बह्र-ए-रजज़ मख़्बून मख़्बून मज़्दूअ’’
राहत के पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े
वो शख़्स मर गया कतार में खड़े खड़े
9
221---2121---1212----212
बह्र-ए-मुज़ारे मुसम्मन मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़
जंग-ओ-जदल से कुछ नहीं हासिल हुआ कभी
निकलेगा कोई रास्ता अम्न-ओ-अमान से
10
221---2121---1212----212
बह्र-ए-मुज़ारे मुसम्मन मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़
ये तुख्म-ए-इन्क़लाब है ज़ाया न कर इसे
ज़रख़ेज़ हो ज़मीन ज़रा इन्तिज़ार कर
11
11212---11212----11212----11212
बह्र-ए-कामिल मुसम्मन सालिम
न उमीद थी ,न ख़याल था .कि भुला ही देगा तू यूँ मुझे
तेरा फ़र्ज़ था कि भुला दिया ,मेरा फ़र्ज़ है न भुला सकूँ
वगरना ज़िन्दगी तो उम्र भर ग़मगीन रहती है
2
तेरी तसवीर को दुनिया से छुपा रखता हूँ
उस से तनहाई में फिर बात किया करता हूँ
4
1222---1222-----1222-----1222
मुहब्बत का दिया रख दर पे उनके आ गया ’आनन’
यही अब देखना है वो बचाते या बुझाते हैं
5
221---2122--//221---2122
मैं आम आदमी हूँ ,है ’वोट’ मेरी ताक़त
है संविधान की यह ,सबसे बड़ी इनायत
6
1212---1122---1212----112/22
तेरा सवाल कोई यूँ बड़ा नहीं था मगर
तमाम उम्र भी गुज़री ,जवाब ही न मिला
7
221---2122 //221---2122
रहबर समझ के तुझको तेरे साथ चल रहे थे
क्या थी ख़बर की तू भी रहजन से कम नहीं है
8
2212--1212--1212---12
बह्र-ए-रजज़ मख़्बून मख़्बून मज़्दूअ’’
राहत के पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े
वो शख़्स मर गया कतार में खड़े खड़े
9
221---2121---1212----212
बह्र-ए-मुज़ारे मुसम्मन मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़
जंग-ओ-जदल से कुछ नहीं हासिल हुआ कभी
निकलेगा कोई रास्ता अम्न-ओ-अमान से
10
221---2121---1212----212
बह्र-ए-मुज़ारे मुसम्मन मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़
ये तुख्म-ए-इन्क़लाब है ज़ाया न कर इसे
ज़रख़ेज़ हो ज़मीन ज़रा इन्तिज़ार कर
11
11212---11212----11212----11212
बह्र-ए-कामिल मुसम्मन सालिम
न उमीद थी ,न ख़याल था .कि भुला ही देगा तू यूँ मुझे
तेरा फ़र्ज़ था कि भुला दिया ,मेरा फ़र्ज़ है न भुला सकूँ
12
2122---1122---1122---112
कोई हफ़्तों न करे बात ,कोई बात नहीं
आप दो पल न करें बात तो डर लगता है
दिल-ए-वीरान में अब कौन इधर आएगा
आप आते है तो वीरान भी घर लगता है