शनिवार, 9 नवंबर 2019

एक ग़ज़ल 131 : झूठ इतना इस तरह --

एक ग़ज़ल : झूठ इतना इस तरह ---

2122---2122---212

झूठ इतना इस तरह  बोला  गया
सच के सर इलजाम सब थोपा गया

झूठ वाले जश्न में डूबे  रहे -
और सच के नाम पर रोया गया

वह तुम्हारी साज़िशें थी या वफ़ा
राज़ यह अबतक नहीं खोला गया

आइना क्यों देख कर घबरा गए
आप ही का अक्स था जो छा गया

कैसे कह दूँ तुम नहीं शामिल रहे
जब फ़ज़ा में ज़ह्र था घोला गया

बेबसी नाकामियों के नाम पर
ठीकरा  सर और के फ़ोड़ा गया

हो गई ज़रख़ेज़ ’आनन’ तब ज़मीं
प्यार का इक पौध जब रोपा गया

-आनन्द.पाठक-