बुधवार, 4 दिसंबर 2019

ग़ज़ल 135 : तेरे हुस्न की सादगी---

फ़ऊलुन---फ़ऊलुन---फ़ऊलुन--फ़ऊलुन
122-------122------122-------122
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
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ग़ज़ल  : तेरे हुस्न की सादगी---

तेरे हुस्न की  सादगी  का असर है
न मैं होश में हूँ ,न दिल की ख़बर है

यूँ चेहरे से पर्दा   गिराना ,उठाना
इसी दम से होता है शाम-ओ-सहर है

सवाब-ओ-गुनह का मै इक सिलसिला हूँ
अमलनामा भी तेरी ज़ेर-ए-नज़र है

गो पर्दे में  है  हुस्न  फिर भी  नुमायाँ
कि रोशन है ख़ुरशीद,रश्क-ए-क़मर है

जो जीना है जी ले हँसी से , ख़ुशी से
मिली जिन्दगी है ,भले मुख़्तसर  है

क़यामत से पहले क़यामत है बरपा
वो बल खा के, लहरा के आता इधर है

नवाज़िश बड़ी आप की है  ये,साहिब !
जो पूछा कि ’आनन’ की क्या कुछ ख़बर है ?

-आनन्द.पाठक-