सोमवार, 29 जून 2020

चन्द माहिए : क़िस्त 75

क़िस्त 75

1
क्या वस्ल की रातें थीं
और न था कोई
हम तुम थे,बातें थीं

2
मासूम सी अँगड़ाई
जब जब ली तुम ने
बागों में बहार आई


3
साँसों में घुली हो तुम
सिमटी रहती हो
अबतक न खुली हो तुम

4
रौनक है महफ़िल की
एक हँसी तेरी
जीनत है हर दिल की

5
हँसती हुई राहों में
दर्द भरा किसने
ख़ामोश निगाहों में


-आनन्द पाठक-

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