गुरुवार, 2 जुलाई 2020

ग़ज़ल152 : चाहे ग़म था ,ख़ुशी थी ,कटी ज़िन्दगी---

बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालि,
फ़ाइलुन---फ़ाइलुन--फ़ाइलुन  -फ़ाइलुन
21 2-------212------212-------212-

चाहे ग़म था  ख़ुशी थी ,कटी ज़िन्दगी
लड़खड़ाती संभलती  रही ज़िन्दगी 

दाँव पर दाँव चलती रही ज़िन्दगी
शर्त हारे कभी हम ,कभी  ज़िन्दगी 

वक़्त ने कब नहीं आजमाया मुझे
साथ छोड़ी नहीं  पर कभी  ज़िन्दगी 

तेरे आदाब क्या हैं ,पता ही नहीं
आज तू ही बता दे मेरी ज़िन्दगी 

अपनी हिम्मत को हमने न मरने दिया
आंधियॊ से भी लड़ती रही ज़िन्दगी 

तेरे घर तक को जाने के सौ  रास्ते 
प्यार की राह बस चल पड़ी ज़िन्दगी

हैफ़ ! ’आनन’ तू ख़ुद से ही गाफ़िल रहा
वरना हर रंग में थी रँगी ज़िन्दगी   

-आनन्द.पाठक-


हैफ़ = अफ़सोस

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